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ख्वाहिशो का समंदर;समंदर में ही रहा
समंदर पार दुनिया कितनी ख्वाब्दार होगी
पर जाने क्यूँ लगा ज़िन्दगी यही पार होगी
अपनी चाहत की दुनिया शहजादा हूँ मै
पर पता नही ख़ुद को कितना हमजुदा हूँ मैं
तैर चले कुछ यु सोचकर तकदीर साथ देगी
किसी न किसी मोड़ तकदीर हाथ देगी
तूफानों के बवंडर में सारा जीवन उलझ गया
जीवन के समंदर में जाने क्या टूटा क्या उलझ गया
बस टूटी कश्ती से मंजिल खोजते रहे
बेजान चट्टानों से जाए किधर ;यही पूछते रहे
जाने सोच कहा टकरा गई;सोचा मंजिल आ गई
पर भरे समंदर में किधर रहे अधर थे अधर में ही रहे
कभी-कभी तलाश मंजिल की यु ही जारी रही
हर मोड़ पर तलाश तेरी ;आदत कुछ यु हमारी रही